Are You at Risk for Bone Spurs (Osteophytes)? Key Factors to Watch

Bone spurs, medically known as osteophytes, might sound worrying, but they are more common than you think. These pointed projections formed along the edges of bones, often occur in joints where two bones meet. The name sounds like a worrisome medical condition, but they can even be asymptomatic for many people. While for the others, they can also be uncomfortable, painful, and limit mobility, especially as they grow and start affecting surrounding tissues.

Wondering whether you could be at risk for bone spurs? Let’s understand their symptoms, causes, and what you can do to manage or treat them effectively.

Symptoms of Bone Spurs

While many bone spurs do not show any symptoms, when they do, they can lead to extreme discomfort. Here’s what to watch out for:

  1. Pain and Stiffness: The most common symptom is pain, especially when the bone spur presses on surrounding nerves or other soft tissues. This can occur in the spine, shoulders, hips, knees, and fingers.
  2. Swelling and Inflammation: Swelling and inflammation can develop when bone spurs irritate surrounding tissues, leading to further discomfort.
  3. Numbness or Tingling: When a bone spur compresses a nerve, it causes numbness, tingling, or weakness in the affected area.
  4. Limited Ability to Move: Bone spurs can limit your ability to move a joint fully, making everyday activities more challenging.
  5. Visible Lumps: In some cases, bone spurs may create a visible or palpable lump beneath the skin, particularly in the finger joints.

Causes of Bone Spurs

Understanding what leads to the formation of bone spurs can help you manage your risk. The primary causes include:

  1. Osteoarthritis: The most common cause, osteoarthritis, is a degenerative joint disease where cartilage breaks down over time, prompting the body to try to repair the damage by forming new bone.
  2. Aging: As you age, the wear and tear of your joints increase, making the development of bone spurs more likely. Most people over the age of 60 have some degree of osteophyte.
  3. Injury or Trauma: Injuries, such as those from sports or accidents, can accelerate the wear on cartilage, leading to the formation of bone spurs.
  4. Poor Posture: Chronic poor posture can put uneven stress on your spine and joints, contributing to the development of bone spurs.
  5. Genetics: There may be a hereditary component, where if your parents had bone spurs, you might be more prone to developing them as well.

Treatment Options for Bone Spurs

Treatment for bone spurs depends on the severity of your symptoms and the impact on your quality of life. Here are the most common treatment approaches:

  1. Physical Therapy: Strengthening the muscles around the affected joint can help alleviate symptoms and improve your range of motion.
  2. Pain Medications: Over-the-counter pain relievers like ibuprofen or acetaminophen can help manage pain and inflammation. In more severe cases, your doctor might recommend corticosteroid injections to reduce inflammation. But it is advisable to take any medication only after consulting your doctor.
  3. Surgery: If a bone spur is causing significant pain, nerve compression, or severe mobility issues, surgery may be necessary to remove the spur and relieve symptoms. Arthroscopic surgery is a less invasive option with quicker recovery times. Consult with your doctor and he will guide you through if he thinks you need a surgery.
  4. Orthotic Devices: In some cases, wearing supportive devices like braces or custom orthotics can help reduce pain and improve joint function.

Pain Management Measures to Prevent or Alleviate Bone Spurs

While you can’t always prevent bone spurs, especially those related to aging or genetics, there are steps you can take to reduce your risk or manage symptoms effectively:

  1. Maintain a Healthy Weight: Being overweight puts additional stress on your joints, particularly your knees, hips, and spine, increasing the risk of bone spur.
  2. Exercise Regularly: Engaging in regular physical activity helps keep your joints flexible and strengthens the muscles that support them. Focus on low-impact exercises like swimming, cycling, or walking to reduce joint stress.
  3. Practice Good Posture: Whether you’re sitting, standing, or lifting, maintaining proper posture can prevent unnecessary strain on your spine and joints, reducing the likelihood of bone spur development.
  4. Wear Supportive Footwear: Shoes with good arch support can help reduce stress on your feet, knees, and hips, particularly if you spend a lot of time on your feet.
  5. Listen to Your Body: If you experience joint pain or stiffness that doesn’t improve with rest, it’s essential to see a healthcare professional. Early intervention can prevent further damage and improve your quality of life.

Conclusion

Bone spurs are a common condition, especially as we age. While they don’t always cause symptoms, they can lead to discomfort and limit your ability to move freely. By understanding the symptoms, causes, and treatment options, you can take proactive steps to manage or prevent bone spurs. If you suspect you have bone spurs or are at risk, consult with a healthcare professional for an accurate diagnosis and personalized treatment plan.

दुनियाभर में आखिर क्यों ज्यादातर मौतें होती हैं हार्ट अटैक से? जानें इसके कारण ,लक्षण और बचाव के उपाय

देश में रोजाना अगर किसी बीमारी से सबसे ज्यादा मौत होने के मामले सामने आ रहे हैं, वो है हार्ट अटैक। इन दिनों कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसमें किसी भी उम्र या तबके का व्यक्ति अचानक से प्राण त्याग देता है। कोई डांस करते-करते अचनाक से गिर जाता है तो कोई स्पीच देते-देते ही मौत के मुंह में चला जाता है और कोई जिम में एक्सरसाइज करते हुए। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 63% लोग लाइफ स्टाइल में खराबी की वजह से मारे जा रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी कुछ लोग अलर्ट नहीं होते हैं और अपनी जान गंवा बैठते हैं. अब सवाल ये उठता है कि आख़िरकार हार्ट अटैक से हर उम्र के लोगों की मौत कैसे हो रही है? आइए इस बारे में जानते हैं।

हार्ट अटैक क्या होता है?

हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन के साथ-साथ खून की भी जरूरत होती है। इस जरूरत को पूरा करती है कोरोनरी धमनियां। लेकिन जब इन कोरोनरी धमनियों में प्लाक जमने लग जाता है तो नसे संकीर्ण होने लगती हैं और तब हृदय को खून की आपूर्ति अवरुद्ध हो जाती है। प्लाक जमने का कारण फैट, कैल्शियम, प्रोटीन और इंफ्लेमेशन कोशिकाओं के द्वारा होता है। प्लाक कठोर होने पर बाहरी आवरण टूट जाता है और इससे नस के चारों तरफ खून के थक्के जमा होने लगते हैं। ऐसे में यदि एक भी थक्का खून की नाली में आ जाता है तो इससे दिल को खून की आपूर्ति होने में बाधा होने लगती है। इस वजह से हृदय की मांसपेशियों को ठीक से ऑक्सीजन नहीं मिल पाता और हालत ख़राब होने लगती है।

हार्ट अटैक आने का क्या कारण है?

इन दिनों लोगों की व्यस्तता भरी दिनचर्या, ख़राब जीवनशैली, अनियमित खानपान, जंक फ़ूड का सेवन, शराब का सेवन और धूम्रपान करने से खासकर युवाओं में हार्ट अटैक का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, तनाव जैसी बीमारियों के कारण भी ये समस्या होने लगी है।

युवाओं में ही क्यों बढ़ रही हार्ट अटैक की समस्या?

डॉक्टर्स का कहना है कि युवाओं में हार्ट अटैक आने का सबसे बड़ा कारण तनाव और ख़राब लाइफस्टाइल है। हृदय से जुड़ी बीमारी ख़राब लाइफस्टाइल के कारण होती हैं। बदलती हुई लाइफस्टाइल ने सबसे ज्यादा दिल को नुकसान पहुँचाया है। इसके अलावा इन दिनों युवा वर्ग भी ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल का शिकार है, इस वजह से भी उन्हें दिल से संबंधित बीमारी होती है। कुछ मामलों में ये बीमारी हेरिडेटरी यानी फैमिली हिस्ट्री के कारण भी होती है। हमारे खानपान का सीधा असर हार्ट पर पड़ता है. यदि आप रोजाना डाइट में ज्यादा फैट ले रहे हैं तो हार्ट में कोलेस्ट्रॉल और हाई ट्राइग्लिसराइड्स धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। इससे हार्ट की आर्टरी में ब्लॉकेज होता है और हार्ट अटैक आ जाता है।

शुरुआती 1 घंटा होता है अहम्

हार्ट में दिक्कत तो काफी पहले से ही शुरू हो जाती है लेकिन कोई इस पर ध्यान नहीं देता है। हमें लगता है कि हार्ट अटैक अचानाक आया है, लेकिन ये पुरानी समस्या होती है. हार्ट अटैक आने के बाद भी लोग अस्पताल ले जाने में देरी करते हैं, जिसके कारण मरीज मौत के मुंह में चला जाता है। लोग कार्डियक अरेस्ट या हार्ट अटैक को गंभीरता से नहीं लेते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, महज 10 फीसदी लोग ही हार्ट अटैक आने के एक घंटे के अंदर अस्पताल पहुँचते हैं। हार्ट अटैक के 55 प्रतिशत मरीजों की मौत समय पर अस्पताल न पहुँचने के कारण होती है। मरीज को जितना जल्दी इलाज मिलेगा वह उतना ही जल्दी ठीक हो सकेगा।

यदि परिवार में कोई दिल का मरीज है तो क्या करें?

हार्ट अटैक आने का कारण अनुवांशिक यानी हेरिडेटरी भी हो सकता है। यदि आपके परिवार में किसी व्यक्ति को हार्ट से संबंधित कोई समस्या है तो आप भी सचेत हो जाएँ।

युवा ही क्यों हो रहे हार्ट अटैक का शिकार?

एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 4 करोड़ लोग ऐसे हैं जो ख़राब लाइफस्टाइल के कारण मौत के मुंह में धकेले गए हैं। इन लोगों की उम्र 30 साल से लेकर 50 साल तक थी। इनमें से ज्यादातर लोग डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, कैंसर, सांस से जुड़ी बीमारी और खासतौर पर ख़राब लाइफस्टाइल का शिकार थे। ख़राब लाइफस्टाइल यानी गलत खानपान, व्यायाम या कसरत ना करना, तनाव, नींद की कमी, प्रदूषित पर्यावरण आदि। सेहत पर ध्यान ना देने और शरीर में हो रही तकलीफ को नजरअंदाज करने के कारण उन्हें अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा।

हार्ट अटैक आने के लक्षण क्या हैं?

आमतौर पर हार्ट अटैक आने पर सीने में दर्द, पसीना आना आम लक्षण माने जाते हैं। लेकिन कुछ आम लक्षण हार्ट अटैक आने से पहले ही लोगों के अंदर दिखने शुरू हो जाते हैं। इन्हें नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। ये लक्षण हैं- ब्लड प्रेशर बढ़ना, बार-बार पेशाब आना, थॉयराड की समस्या आना, सीने में भारीपन महसूस होना, धड़कन बढ़ना, किसी एक बांह या दोनों में दर्द होना, सांस फूलना, पैरों में सूजन होना, सीने में खिंचाव या जलन महसूस होना आदि। इन लक्षणों के महसूस होते ही आप बिना देरी किये तुरंत कार्डियोलॉजिस्ट से संपर्क करें।

हार्ट अटैक आने पर क्या करें?

यदि आपको हार्ट अटैक जैसे लक्षण दिख रहे हैं तो आप एक जगह शांति से बैठ जाएं।
गाड़ी चला रहे हो तो रोक दें और तुरंत आसपास वालों को बुलाएं।
यदि हार्ट अटैक आने वाला व्यक्ति होश में है और वो खुद ही सांस ले रहा है तो उसे कार्डियोपल्मोनरी रिसस्टिेशन या फिर सीपीआर देने की जरूरत नहीं है। उसे तुरंत अस्पताल ले जाएं।
यदि मरीज बेहोश हो गया है तो उसे तुरंत सीपीआर देने की जरूरत है।

हार्ट अटैक और हार्ट की बीमारियों से बचने के लिए क्या करें?

  • आप खुद को एक्टिव रखें।
  • खानपान में सुधार करें। जंक फ़ूड के सेवन से बचें।
  • अपने दिन की शुरुआत व्यायाम या एक्सरसाइज से करें।
  • अधिक तनाव या टेंशन ना लें।
  • साफ-सफाई का ख्याल रखिए।
  • विटामिन से भरपूर सादा घरेलू भोजन खाएं।
  • डायबिटीज के मरीज, हाइपरटेंशन से पीड़ित लोग नियमित रूप से हार्ट टेस्ट करवाते रहें।
  • धूम्रपान और शराब के अधिक सेवन से बचें।
  • ब्लड प्रेशर, शुगर और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखें।
  • मोटापे को कम करें।
  • डॉक्टर से सालाना स्वास्थ्य जांच कराएं।

अपने डॉक्टर की सलाह लेकर समय-समय पर ईसीजी, ब्लड टेस्ट, इकोकार्डियोग्राफी, एंजियोग्राम या फिर कार्डिएक सीटी या एमआरआई करवाते रहें।
हार्ट अटैक के खतरे को कम करने के लिए डॉक्टर आपको एस्पिरिन, बीटा ब्लॉकर, स्टैटिन, कैल्शियम चैनल ब्लॉकर या कुछ पैन किलर जैसी दवाइयां लिख सकते हैं। डॉक्टर की सलाह लेकर ही इन दवाइयों का सेवन करें।

आखिर कितनी खतरनाक है हेपेटाइटिस बीमारी? क्यों हर साल लाखों लोग बन रहे इसका शिकार

इन दिनों बदलती लाइफस्टाइल में लोगों को कई बीमारियों ने घेर लिया है। इनमें से कुछ बीमारियां तो मौसमी होती हैं लेकिन कुछ इतनी गंभीर होती हैं जिनका असर कुछ समय बाद पता चलता है। जब तक इंसान उसे समझता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसी ही एक बीमारी है हेपेटाइटिस। बता दें हेपेटाइटिस लीवर से जुड़ी बीमारी है, जो वायरल संक्रमण की वजह से होती है। हर साल लाखों लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं। इसे बीमारी के प्रति पूरी दुनिया की जनता को जागरूक करने लिए हर साल 28 जुलाई को ‘विश्व हेपेटाइटिस दिवस’ मनाया जाता है। आइए जानते हैं आखिर हेपेटाइटिस बीमारी होती क्या है, हेपेटाइटिस कितने प्रकार का होता है, हेपेटाइटिस के लक्षण, हेपेटाइटिस से बचाव, हेपेटाइटिस का इलाज आदि।

हेपेटाइटिस क्या है?

इन दिनों गलत खानपान के कारण ब्लड प्रेशर, शुगर, ओबेसिटी जैसी बीमारियां आम होती जा रही हैं। इससे शरीर के हर अंग को नुकसान पहुँचता है। इस दौरान हेपेटाइटिस होने का खतरा भी बढ़ जाता है। हेपेटाइटिस मूल रूप से लीवर से जुड़ी बीमारी है। यह किसी वायरल इन्फेक्शन के कारण होती है। इस बीमारी से लीवर में सूजन आ जाती है, जिससे वजह शरीर में मौजूद सेल्स को नुकसान पहुंचता है। फिर धीरे-धीरे ये बीमारी शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करना शुरू कर देती है। यदि सही समय पर टेस्ट करके हेपेटाइटस बीमारी का पता नहीं लगाया गया और इलाज शुरू नहीं किया गया तो इससे इंसान की मौत भी हो सकती है।

हेपेटाइटिस कितने प्रकार की होती है?

हेपेटाइटिस बीमारी 5 प्रकार की होती है-

  • हेपेटाइटिस ए (Hepatitis A)r
  • हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B)
  • हेपेटाइटिस सी (Hepatitis C)
  • हेपेटाइटिस डी (Hepatitis D)
  • हेपेटाइटिस ई (Hepatitis E)

हेपेटाइटिस बीमारी किस कारण से होती है?

हेपेटाइटिस A

हेपेटाइटिस वैसे तो वायरल इन्फेक्शन के कारण होती है। हेपेटाइटिस A सबसे ज्यादा वायरल इन्फेक्शन के कारण होता है। खासतौर से दूषित खाने और दूषित पानी के सेवन से इसका खतरा रहता है।

हेपेटाइटिस B

हेपेटाइटिस B संक्रमित खून, सिमेन या फिर किसी दूसरे फ्लूइड के एक्सपोजर के कारण होता है। आमतौर पर लोग इसका शिकार होते हैं।

हेपेटाइटिस C

संक्रमित खून या संक्रमित इंजेक्शन का इस्तेमाल करने से हेपेटाइटिस C होता है।

हेपेटाइटिस D

हेपेटाइटिस D HIV वायरस के कारण होता है। दरअसल, जो लोग पहले से ही HIV वायरस से ग्रसित हैं, वह इस वायरस से भी तुरंत संक्रमित हो सकते हैं। जब HDV और HBV दोनों ही वायरस एक साथ हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में मरीज ज्यादा गंभीर स्थिति में पहुँच जाता है।

हेपेटाइटिस E

HIV वायरस के कारण ही हेपेटाइटिस E भी होता है। ज्यादातर देशों में विषैले पानी और खाने के कारण ये वायरस फैलता है।

अन्य कारण

इसके अलावा अल्कोहल का सेवन, टॉक्सिन्, कुछ दवा और खास मेडिकल स्थितियों में भी हेपेटाइटिस हो जाता है। साथ ही हेपेटाइटिस फैलने के कुछ अन्य कारण मां से बच्चे में वायरस का ट्रांसमिशन, असुरक्षित यौन संबंध, असुरक्षित सुइयों का इस्तेमाल करना भी है।

हेपेटाइटिस के क्या लक्षण हैं?

  • पेट दर्द और सूजन होना
  • सिर दर्द व चक्कर आना
  • पेशाब का रंग बदलना
  • अचानक वजन कम होना
  • पीलिया होना
  • कई सप्ताह तक बुखार बने रहना
  • हर वक्त थकान महसूस होना
  • त्वचा की रंगत पीली होना
  • आंखों का सफेद हिस्से पीला पड़ जाना
  • भूख न लगना
  • उल्टी आना या जी मिचलाना आदि

कैसे फैलता है हेपेटाइटिस?

जब लीवर में सूजन होने लगती है तो उसे हेपेटाइटिस कहा जाता है। इससे लीवर डैमेज होने लगता है और साथ ही लीवर का कार्य प्रभावित होने लगता है। ज्यादा शराब के सेवन से, विषैले पदार्थ के सेवन से, ख़राब दवाएं, अन्य मेडिकल गलतियां, असुरक्षित यौन संबंध आदि से हेपेटाइटिस की बीमारी फैलने लगती है।

हेपेटाइटिस से कैसे बचें?

  • हमेशा स्वस्थ भोजन करें।
  • साफ़ और नए इंजेक्शन का प्रयोग करें।
  • किसी और की रेजर या ब्लेड का उपयोग ना करें।
  • सेफ संबंध बनाएं।
  • टैटू के समय इस्तेमाल होने वाले औजार साफ़ इस्तेमाल करें।
  • बच्चों को सही समय पर हेपेटाइटिस बी का टीका जरूर लगवाएं।

हेपेटाइटिस चेक करने के लिए कौनसे टेस्ट कराने होंगे?

  • लीवर फंक्शन टेस्ट
  • सोनोग्राफी
  • पेट का अल्टासाउंड
  • लिवर बायोप्सी
  • कुछ ब्लड टेस्ट

ये टेस्ट कराने से पहले आप डॉक्टर की सलाह जरूर लें लें।

हेपेटाइटिस का इलाज क्या है?

हेपेटाइटिस अलग-अलग प्रकार का होता है। ऐसे में हर व्यक्ति का इलाज भी उसकी बीमारी के आधार पर हो सकता है। डॉक्टर सबसे पहले मरीज को हेपेटाइटिस से संबंधित सभी जांच यानी पेट का अल्ट्रासाउंड, लीवर फंक्शन टेस्ट, लिवर बायोप्सी, मार्कर टेस्ट और ब्लड टेस्ट आदि करवाने की सलाह देते हैं। इन जांच के आधार पर इलाज शुरू होता है। दवाइयों के अलावा अच्छी डाइट और लाइफस्टाइल में सुधार से भी आप हेपेटाइटिस जैसी बीमारी को खत्म कर सकते हैं।

हेपेटाइटिस से संक्रमित व्यक्ति को किन चीजों से परहेज करना चाहिए?

शराब, सिगरेट, स्पाइसी चीजें, पिज्जा, बर्गर, जंक फ़ूड, तला गला खाना, बासी खाना, फ़ास्ट फ़ूड आदि चीजों के सेवन से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा नमक का सेवन भी कम करना चाहिए। दरअसल, नमक शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ाता है। हेपेटाइटिस के मरीजों के शरीर में शुगर की मात्रा नियंत्रण में रहनी चाहिए।

हेपेटाइटिस बीमारी कितने दिन में ठीक होती है?

ये आपके इलाज पर और साथ ही बीमारी के प्रकार पर निर्भर करता है कि हेपेटाइटिस कितने दिन में ठीक हो सकती है। यदि सही समय पर बीमारी का इलाज शुरू हो जाए हेपेटाइटिस को ठीक होने में 5 से 6 महीने लग सकते हैं। साथ ही जड़ से खत्म होने में एक साल भी लग सकता है।

हेपेटाइटिस में किन चीजों का सेवन करना चाहिए?

साबुत और सख्त अनाज यानी होल ग्रेन हेपेटाइटिस के मरीजों के लिए सबसे अच्छा स्वस्थ अनाज माना जाता है।
हेपेटाइटिस के मरीज आटे की ब्रेड, दलिया, ब्राउन राइस, होल ग्रेन पास्ता, बाजरे की खिचड़ी, चावल की खिचड़ी, सोयाबीन, आदि का सेवन कर सकते हैं।
इसके अलावा हेपेटाइटिस के मरीज ओट्स, राई और कॉर्न जैसी स्वस्थ चीजें भी खा सकते हैं।

अस्वीकरण

इस लेख में दी गई सलाह, जानकारी और सुझाव सिर्फ एक सूचना देने के उद्देश्य से दी गई है। इसे आप पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ले सकते हैं। ना ही हमारी वेबसाइट इस लेख में दी गई सूचना को लेकर किसी तरह का दावा करती है। इस बीमारी से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

How to Avoid Bladder Infections During Pregnancy? – Causes, Symptoms, and Risk Factors

Pregnancy is a beautiful and transformative journey for women, but it also brings about certain challenges and health concerns. One such concern is the increased susceptibility to bladder infections or urinary tract infections (UTIs). These infections can cause discomfort and potentially lead to complications if left untreated. In this blog, we will explore the causes, symptoms, and risk factors associated with bladder infections during pregnancy. Additionally, we will provide essential tips to help expecting mothers prevent and manage UTIs effectively.

What is a Bladder Infection?

A bladder infection is a type of urinary tract infection (UTI). This refers to an infection anywhere in the urinary tract, such as the:

  • Bladder
  • Kidneys
  • Ureters
  • Urethra

The kidneys and ureters are a part of the upper urinary tract. Urine is created when the kidneys filter the blood to remove waste. Urine is transported to the lower tract by the ureters.

The bladder and urethra are parts of the lower tract. Urine is held in reserve by your bladder until you’re ready to let it out. The urethra is the passageway where urine leaves the body.

Since germs can reach the lower tract more easily, UTIs are more common there.

Causes of Bladder Infections during Pregnancy

Bladder infections occur when bacteria enter the urinary tract and multiply, leading to inflammation and infection. During pregnancy, several factors contribute to the increased likelihood of developing a bladder infection:

Hormonal changes – Pregnancy hormones can alter the urinary tract, making it more susceptible to infections.

Urinary stasis – As the uterus expands, it can exert pressure on the bladder, inhibiting complete bladder emptying and promoting bacterial growth.

Weakened immune system – Pregnancy naturally suppresses the immune system to prevent the body from rejecting the developing fetus. However, this also makes pregnant women more vulnerable to infections, including bladder infections.

Symptoms of Bladder Infections during Pregnancy

Identifying the symptoms of bladder infections during pregnancy is crucial for prompt diagnosis and treatment. Common signs and symptoms include:

  • Increased frequency and urgency of urination.
  • Burning sensation or pain during urination.
  • Cloudy, dark, or foul-smelling urine.
  • Pelvic discomfort or pressure.
  • Blood in the urine (hematuria).
  • Mild fever or chills.

If you experience any of these symptoms, it is important to consult your healthcare provider for a proper diagnosis and appropriate treatment.

Risk Factors for Bladder Infections during Pregnancy

Certain risk factors can heighten the chances of developing bladder infections during pregnancy:

Previous UTIs – If you’ve had a bladder infection in the past, your likelihood of recurrence is higher during pregnancy.

Urinary tract abnormalities – Structural irregularities in the urinary tract can obstruct the flow of urine and increase the risk of infections.

Sexual activity – Sexual intercourse can introduce bacteria into the urinary tract, increasing the chances of infection. However, it’s essential to maintain a healthy sexual relationship during pregnancy, and precautions such as proper hygiene and urinating before and after intercourse can help reduce the risk.

Diabetes – Pregnant women with diabetes are at a higher risk of developing bladder infections.

Does Bladder Infection Prone Risk to The Baby?

Pregnancy-related UTIs like bladder infection can raise the likelihood of high blood pressure developing, and your baby can be born earlier and smaller than usual. This makes it crucial to treat a UTI as quickly as possible, even if you are symptom-free.

Prevention and Early Detection

Preventing bladder infections during pregnancy is possible with a few simple yet effective strategies:

Stay hydrated – Drinking plenty of water helps flush out bacteria and keeps the urinary tract healthy. Aim for at least eight to ten cups of fluids daily, unless otherwise advised by your healthcare provider.

Practice good hygiene – Always wipe from front to back after using the toilet to prevent bacteria from entering the urethra. Avoid using harsh soaps or douches in the genital area, as they can disrupt the natural balance of bacteria.

Urinate frequently – Don’t hold urine for extended periods, as this can promote bacterial growth. Urinate as soon as you feel the urge and empty your bladder completely.

Maintain a balanced diet – A nutritious diet can support your immune system and overall health. Include plenty of fruits, vegetables, whole grains, and lean proteins in your meals.

Early Treatment – quickly treating any vaginal infection that may occur, including thrush or a sexually transmitted infection

Wear comfortable clothing – Opt for loose-fitting, breathable cotton underwear to allow air circulation and breathing space to stay comfortable and cozy.

The following tips could also be helpful:

  • Urinate soon after sexual contact
  • Go to the toilet as soon as you sense the need, don’t wait.
  • After using the restroom, wipe from front to back.
  • Wear good quality cotton underwear

Conclusion

Bladder infections can be an unwelcome occurrence during pregnancy, but with proper knowledge and proactive measures, they can be minimized. By understanding the causes, recognizing the symptoms, and being aware of the risk factors associated with bladder infections during pregnancy, expectant mothers can take steps to protect their urinary health. Incorporating preventive strategies such as staying hydrated, practicing good hygiene, urinating frequently, maintaining a balanced diet, and wearing comfortable clothing can significantly reduce the risk of bladder infections. Remember to consult your healthcare provider if you experience any symptoms or concerns, as they can provide appropriate guidance and treatment to ensure a healthy pregnancy journey.

How to Recognize Hypochondriasis? – Causes, Symptoms, Diagnosis and Treatment

A mental health problem known as illness anxiety disorder or hypochondriasis is represented by excessive worry about one’s own health despite the absence of any symptoms of illness. Another name for hypochondriasis is somatic symptom disorder.

A person who has hypochondriasis is referred to as a hypochondriac. A hypochondriac obsesses over their health continually, which causes significant levels of worry, whereas a healthy person often just worries about their well-being when it is essential. A hypochondriac believes that no matter how trivial a health issue, such as a common cold or a mild headache, is a severe and life-threatening condition. The severity of hypochondria relies on how much anxiety and suffering it causes the person experiencing it, as well as how much it interferes with their ability to function normally and be productive daily.

What are the Causes of Hypochondriasis?

There is currently no known cause for hypochondriasis. However, several underlying causes, such as the following, have a role in this health anomaly in people:

Beliefs And Fallacies

Some people search for proof to show a life-threatening sickness is affecting their bodies because they feel restless and unsatisfied with simple explanations for common symptoms. As a result, people misinterpret how the system’s organs work and assume that something is seriously wrong with their health.

Hereditary factors

People who have parents or other close relatives who suffer from hypochondria are more likely to develop the condition themselves.

Unsettling Historical Events

Sometimes a severe disorder in the past that caused a great deal of pain and suffering can cause unwarranted fears of relapsing into the same dangerous health condition.

Associated Medical Issues

People who already suffer from psychiatric disorders including depression, anxiety, and obsessive-compulsive disorder, to name a few, are significantly more likely to develop hypochondriasis.

Risk Factors Associated with Hypochondriasis

In most cases, hypochondriasis develops in young adults, although it can also happen in middle-aged people, and it grows worse as people age. An aging person’s main dread is frequently concern over forgetting their past or experiencing complete memory loss. Some people are more likely than others to develop hypochondriasis due to specific factors. These include:

  • Heavy workload and stress, whether at work or at home
  • Persistent worry is a major personality trait.
  • Frequent online browsing on health and disease-related subjects
  • Trauma from childhood, including mental and physical abuse
  • A severe medical ailment had in the past

What are the Symptoms of Hypochondriasis?

Most hypochondriacs are worried about their health and believe they are ill despite simply experiencing common bodily sensations like stomach rumbling or a small injury symptom like a skin rash.

The following are the distinctive signs of hypochondriasis:

  • Irrational fears of being sick all the time
  • Examining the body repeatedly to look for any anomalies
  • Avoiding familiar surroundings and well-known individuals out of fear of getting sick
  • Concerned about contracting deadly illnesses like cancer or a heart attack
  • Skeptical about being sick, either after several doctor visits and medical testing prove their overall health, or completely refusing to seek medical advice.

How can you Treat Hypochondriasis?

The patient’s level of hypochondriasis-related suffering must be determined in order to develop therapies that will eventually help the patient get over their fear and lead a more fulfilling life.

The typical steps in treating hypochondria include:

(CBT) Cognitive Behavioural Therapy

CBT, also known as psychotherapy or talk therapy, aims to provide the patient the freedom to openly discuss their symptoms and develop an understanding of their erroneous thinking in order to give them practical advice on how to reduce anxiety and face various circumstances with ease.

Medications on Prescription

In addition to CBT, the doctor may also recommend antidepressant and anxiolytic medications to the patient. These medications alter neurotransmitter activity in the brain, improve mood and memory, and reduce anxiety.

A doctor would examine a patient for physical issues if they were being treated for hypochondria. The following are their options:

  • Expressing an accurate and transparent assessment of the reasons of concern giving the affected person guidance and resources for self-help
  • Referring the patient to a therapist or psychologist, particularly if they believe that depression or anxiety may be making the symptoms worse
  • Providing medicine, such as antidepressants to lessen anxiety, are all examples of cognitive behavioral therapy.

Lifestyle Improvement

Simple habits like eating a balanced diet, exercising every day, and abstaining from vices like drinking and smoking help the hypochondriac patient to improve their general health, ensuring that they fully recover.

Conclusion

If you believe that you or someone you know is suffering from hypochondria, inform them that you are willing to support them and that you wish to assist them. Discuss the situation with them, pay attention to what they have to say, and encourage them to consult a doctor or other healthcare provider.

We highly value everyone’s participation and also emphasize that the winning criteria were not solely based on the selfie submitted, it included other factors like active participation, the number of tags, and adherence to the contest rules. The winners chosen by our team were deemed truly deserving based on these considerations. We encourage everyone to continue participating in future contests to win exciting prizes.

Is Disease X as dangerous as COVID-19, and is India ready to handle it?

It’s not long since WHO (World Health Organization) announced the outbreak of COVID-19, and that it was no longer a global emergency, signifying the monumental ending of a deadly pandemic that put the lives of billions of people worldwide at risk. Now, experts and professionals are under the fear that an even more fatal disease might break free and cause an even more lethal pandemic. As we grapple with the ongoing pandemic, concerns about future outbreaks loom large. One such concern is the concept of “Disease X“.

According to the WHO, “Disease X represents the knowledge that a serious international epidemic could be caused by a pathogen currently unknown to cause human disease.” The phrase was first used in 2018. In this blog, we will explore the hypothetical nature of Disease X and assess India’s readiness to deal with such a threat.

Understanding Disease X

The WHO originally released a list of diseases that could start a “deadly pandemic” in 2017 and then carried out a prioritizing exercise the following year. The list currently contains COVID-19, Ebola virus disease, Marburg virus disease, Lassa fever, Middle East respiratory syndrome, severe acute respiratory syndrome (SARS), Nipah, Zika, and the most recent addition to the list, “Disease X.”

Disease X is not a specific disease but rather a placeholder term used by the World Health Organization (WHO) to describe a previously unknown or unforeseen pathogen that could cause a future pandemic. The concept of Disease X serves as a reminder that new diseases can emerge at any time, posing significant risks to global health security.

COVID-19 & Disease X

To assess the potential danger of Disease X, we can draw comparisons with COVID-19. It is important to note that Disease X is a hypothetical scenario, and its characteristics are unknown. However, we can evaluate the preparedness and response mechanisms developed during the COVID-19 pandemic to gauge India’s readiness for a future unknown disease.

COVID-19 has proven to be highly contagious, causing severe illness and overwhelming healthcare systems worldwide. Its impact has been exacerbated by factors such as asymptomatic transmission and the absence of a vaccine during the initial stages. While Disease X may differ in specific attributes, it is crucial to be prepared for a range of possibilities.

How can India Handle Disease X after Battling with COVID-19?

India’s battle against COVID-19 has been a mixed bag. The country faced enormous challenges due to its large population, dense urban areas, and limited healthcare infrastructure in certain regions. However, India also demonstrated resilience, adaptability, and the ability to implement large-scale interventions.

The pandemic prompted India to strengthen its healthcare system, enhance testing capabilities, and establish dedicated COVID-19 treatment facilities across the country. Additionally, the government implemented nationwide lockdown measures, leveraging technology for contact tracing, and facilitating vaccine distribution.

How Can the Country Prepare?

The experience gained during the COVID-19 pandemic provides valuable insights and lessons for India’s readiness for Disease X. Here are some key areas that need attention:

Strengthening Healthcare Infrastructure

India must continue investing in healthcare infrastructure, including hospitals, diagnostic laboratories, and research facilities. This will enhance the capacity to respond to future outbreaks effectively.

Improving Surveillance and Early Detection

Developing robust surveillance systems and early warning mechanisms can aid in detecting and containing a new disease. Timely identification and tracking of potential outbreaks are crucial to mitigate the spread. Additionally, it is necessary to spread awareness about the sudden emergence of the disease to timely curb and take essential safety measures.

Enhancing Research and Development

India has a strong pharmaceutical industry and a wealth of scientific talent. Encouraging research and development in the field of infectious diseases, vaccines, and therapeutics will bolster the nation’s ability to respond to novel threats.

Building a Skilled Workforce

Strengthening the healthcare workforce by improving training and providing necessary resources will ensure a competent response during future outbreaks. Well-trained healthcare professionals are vital for managing emergencies effectively.

Strengthening International Collaboration

Disease X is a global concern that necessitates international cooperation and information sharing. India should actively engage with international organizations, exchange expertise, and contribute to global preparedness efforts.

Conclusion

While the concept of Disease X remains hypothetical, it serves as a reminder of the unpredictable nature of emerging infectious diseases. India’s response to COVID-19 has been a learning experience, highlighting both strengths and areas for improvement. The nation’s readiness to handle Disease X will depend on its ability to strengthen healthcare infrastructure, enhance surveillance systems, invest in research and development, build a skilled workforce, and foster international collaboration.

क्या आप भी रात को बेचैनी और नींद न आने की समस्या से परेशान हैं? जानिए कारण,लक्षण और बचाव के उपाय

नींद न आना एवं बेचैनी एक आम समस्या है जिससे दुनियां भर के लाखों लोग पीड़ित हैं। अनिद्रा मानसिक के साथ ही हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। अगर अनिद्रा का समय पर उपचार नहीं किया जाए तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम अनिद्रा के कारणों एवं लक्षणों की पहचान कर चिकित्सकीय परामर्श लें।

आजकल की व्यस्ततम एवं भागदौड़ भरी जीवनशैली, तनावपूर्ण वातावरण, अकेलापन सहित कई कारणों से हमारी नींद प्रभावित होती है। नींद का सीधा संबंध हमारे मस्तिष्क से है। अगर हम पर्याप्त नींद नहीं लेंगे तो हमारे मस्तिष्क को आराम नहीं मिलेगा और हम अवसाद से ग्रसित हो जाएंगे। जिसका असर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा और यह हमारे लिए काफी नुकसानदेह साबित होगा।

ऐसे में आज के आर्टिकल में हम अनिद्रा के कारणों, लक्षणों एवं इसके उपचार के बारे में जानेंगे।

नींद नहीं आने के क्या कारण हैं?

आमतौर पर नींद नहीं आना हमारे दैनिक जीवन की घटनाओं, तनाव एवं आदतों पर अधिक निर्भर करता है। इसके अलावा कुछ ऐसे मेडिकल कारण भी होते हैं, जिससे हमें अनिद्रा की समस्या होती है। अब हम नींद नहीं आने के कारणों को विस्तार से समझते हैं।

1. तनाव

नींद नहीं आने का एक प्रमुख कारण तनाव है। अक्सर हम ऑफिस के काम, घर की परेशानियों, आर्थिक एवं भावनात्मक कारणों से तनावग्रस्त हो जाते हैं। जिससे हमारी नींद प्रभावित होती है। हम तनाव के चलते देर रात तक अपनी समस्याओं के बारे में सोचते रहते हैं और नींद नहीं निकाल पाते। जिसका नकारात्मक प्रभाव हमारी दिनचर्या पर भी पड़ता है।

2. सोने का समय फिक्स नहीं होना

समय पर नहीं सोना भी नींद नहीं आने का एक बड़ा कारण है, क्योंकि नींद आने का एक तय समय होता है, जब हमें सोना चाहिए, लेकिन हम उस समय नहीं सोकर अन्य कार्य जैसे मोबाइल चलाना, टीवी देखना आदि करने लग जाते हैं, इससे भी हमारी नींद प्रभावित होती है।

3. असुविधाजनक स्थान एवं वातावरण

नींद नहीं आने का एक कारण यह भी है कि हम जहाँ सो रहे वह स्थान कितना सुविधाजनक और वहां का वातावरण कैसा है। अगर आपका घर इंडस्ट्रियल एरिया, बस स्टेण्ड, रेलवे या हाइवे के आसपास है तो भी नींद नहीं आने की समस्या हो सकती है। इन सब के अलावा सोने के स्थान, मौसम के अनुकल सुविधा यानी गर्मी के दिनों में हवादार स्थान आदि का होना भी आवश्यक है।

4. शाम को अधिक मात्रा में भोजन

अगर शाम को अधिक मात्रा में भोजन किया है तो भी नींद नहीं आने की समस्या हो सकती है, क्योंकि अत्यधिक मात्रा में भोजन करने से असहजता महसूस होती है। जिससे नींद प्रभावित होती है।

5. मानसिक विकार

अगर आप किसी तरह के मानसिक विकार से पीड़ित है तो भी अनिद्रा की समस्या हो सकती है। अगर आप बहुत जल्दी जाग जाते हैं तो भी यह अनिद्रा का ही लक्षण है।

6. दवा, चाय, शराब या कैफीन का सेवन

अगर आप शाम को चाय, कॉफी, शराब या दवा का सेवन करते हैं तो भी अनिद्रा की समस्या हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन पदार्थों के सेवन से असहजता, बेचैनी का अनुभव होता है जो नींद में खलल डालने का काम करते हैं।

रात को बेचैनी और घबराहट क्यों होती हैं?

रात को बेचैनी और घबराहट का एक प्रमुख कारण पौष्टिक एवं संतुलित आहार का ग्रहण नहीं करना है। अगर हमारा शाम का भोजन सात्विक एवं संतुलित नहीं होगा तो आपके पेट में गैस बनेगी और बेचैनी एवं घबराहट होगी। इसके अलावा तनाव, डिप्रेशन, अनचाहे विचार, किसी बात का भय, विटामिन्स की कमी से भी बेचैनी और घबराहट की समस्या रहती है।

बेचैनी के लक्षण क्या है?

घबराहट महसूस होना

बेचैनी का एक प्रमुख लक्षण घबराहट महसूस होना है। साथ ही तेज़ धड़कन, सीने पर दबाव, बीपी का कम या हाई हो जाना भी इसी के अंतर्गत आता है।

अस्थिरता

बेचैनी में व्यक्ति को अस्थिरता महसूस होती है। वह किसी जगह पर खड़े रहने या बैठने में अस्थिर महसूस करता है।

चिड़चिड़ापन

बेचैनी में व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। व्यक्ति छोटी-छोटी बात पर चिढ़ने लगता है और कई बार गुस्सा भी करता है।

ध्यान केंद्रित न हो पाना

बेचैनी में व्यक्ति ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हो जाता है। बेचैनी में व्यक्ति के सोचने और निर्णय लेने की क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

बहुत अधिक सोचना

बेचैनी में व्यक्ति को एक ही समय में कई अनचाहे विचार आते हैं। व्यक्ति एक ही विचार को दोहराता है। आमतौर पर यह सभी विचार नकारात्मक होते हैं।

क्या नींद न आना और बेचैनी एक प्रकार के मानसिक रोग की निशानी हैं?

नींद नहीं आना और बेचैनी मानसिक रोग की निशानी हो सकता है लेकिन यह मनोचिकित्सक ही बेहतर बता पाएंगे कि यह लक्षण आपको किस कारण से हो रहा है। जब आप डॉक्टर को दिखाने जाएंगे तो वे काउंसलिंग कर यह पता लगाएंगे कि आपको नींद नहीं आने और बेचैनी का मूल कारण क्या है?

नींद नहीं आने की समस्या से छूटकारा कैसे पाए?

यह समस्या सामान्य तौर पर चिंता, अत्यधिक सोच-विचार एवं मानसिक रोग से जुड़ी है। ऐसे में इस समस्या का निदान मनोचिकित्सक के पास ही संभव है। हम अपने स्तर पर यह कर सकते हैं कि अनचारे विचारों को खुद पर हावी नहीं होने दें, देर रात तक नहीं जागे, खुश रहने का प्रयास करें, रात को समय पर सोने की आदत डाले मोबाइल का प्रयोग रात के समय सीमित करें आदि।

क्या नींद नहीं आना किसी खतरनाक बीमारी का संकेत हैं?

प्रारंभिक तौर पर ऐसा नहीं है कि अगर आपको नींद नहीं आती तो यह किसी गंभीर बीमारी का संकेत है, क्योंकि इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं लेकिन अगर यह समस्या लंबे समय तक बनी रहे तो आप मानसिक रोग के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में अगर रात में नींद नहीं आए तो एक बार डॉक्टर को अवश्य दिखाना चाहिए।

क्या अनिद्रा और बेचैनी के पीछे हम खुद ज़िम्मेदार है?

जी हॉं, सामान्य तौर पर हम ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि हम किसी बात या विचार को इतना गहराई से सोचते हैं कि उसकी वजह से हम तनाव में चले जाते हैं और रात को नींद नहीं आने की समस्या से परेशान होते हैं। अगर हम ऐसे अनचाहे विचारों, किसी बात के दोहराव, अत्यधिक चिंता से दूरी बनाएंगे तो नींद नहीं आने की समस्या से बच सकते हैं।

अनिद्रा और बेचैनी की समस्या होने पर डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

अगर अनिद्रा और बेचैनी की समस्या कुछ दिनों से अधिक समय तक रहती है और उसके पीछे थकान, पेट में गैस बनने जैसे कारण नहीं हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। यह एक ऐसी समस्या है जो सामान्य भी हो सकती है और इसके पीछे के गंभीर कारण भी हो सकते हैं। ऐसे में इस तरह की समस्या होने पर चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए।

किस प्रकार के डॉक्टर इस समस्या का इलाज करते हैं?

नींद नहीं आना और बेचैनी का इलाज मनोचिकित्सक करते हैं। मनोचिकित्सक हमारे लक्षणों, गतिविधियों, समस्या की अवधि को ध्यान में रखते हुए इलाज शुरू करते हैं, जिससे हमें इस प्रकार की समस्या से छुटकारा मिलता है। हालांकि यह उपचार लम्बी अवधि का हो सकता है।

 

उपरोक्त आर्टिकल इंटरनेट पर उपलब्ध विविध सामग्रियों के आधार पर लिखा गया है जोकि जानकारी मात्र के लिए है। अगर आप इस प्रकार की किसी समस्या से परेशान है तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएं। अगर आप उदयपुर व आसपास निवास करते हैं तो डॉ. चौधरी हॉस्पीटल, सेक्टर 4, उदयपुर विजिट करें। अगर आप अन्यत्र से हैं तो अपने नजदीकी अस्पताल या डॉक्टर से परामर्श लें।

क्या आप को भी सीने में दर्द होता है? जानिए इसके कारण और बचाव के उपाय

जब भी हमारे सीने में अचानक दर्द होता है तो हार्ट अटैक का डर जरूर सताने लगता है। कभी-कभी यह चिंता का विषय भी बन जाता है। लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार सीने में दर्द होना, हार्ट अटैक ही हो। सीने में दर्द के अन्य कारण भी हो सकते हैं।

ऐसे में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि आखिर चेस्ट पेन किन-किन कारणों से होता है और सीने में दर्द का इलाज क्या है?

सबसे पहले तो यह जान लेना आवश्यक है कि छाती में दर्द विभिन्न कारणों से होता है। यह सीने में दर्द के प्रकार, दिशा एवं समय पर भी तय करता है। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि किसी व्यक्ति को सीने के लेफ्ट में चेस्ट पैन तो किसी को राइट साइड में चेस्ट पैन होता है। किसी को सीने में दर्द हल्का तो फिर किसी को सीने में तेज दर्द हो सकता है। किसी को सीने का दर्द कम समय तो किसी को सीने का दर्द अधिक समय तक रह सकता है। ऐसे में जरूरी नहीं कि सभी दर्द का कारण एक ही हो। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

सीने में दर्द के क्या कारण हो सकते हैं?

सबसे पहले हम उन प्रमुख कारणों के बारे में विस्तार जानेंगे जिसकी वजह से सीने में दर्द होता है, जो निम्न प्रकार हैं।

हृदय संबंधी कारण

  • हार्ट अटैक आने की संभावना या हार्ट अटैक के कारण छाती में दर्द
  • हृदय की रक्त वाहिकाओं के अवरुद्ध होने पर
  • पेरिकार्डिटिस यानी हृदय के पास थैली में सूजन से
  • कार्डियोमायोपैथी, हृदय की मांसपेशी संबंधी रोग से
  • एओर्टिक डिसेक्शन यानी जब बड़ी रक्त वाहिका जो खून को दिल से पूरे शरीर में ले जाती है। वह फट जाती है, जिससे भी सीने में अचानक दर्द उठता है।

फेफड़े संबंधी कारण

  • निमोनिया होने से भी छाती में दर्द
  • प्लूरिसी, फेफडों के आसपास के हिस्से में सूजन आना
  • न्यूमोथोरैक्स यानी फेफड़ों से हवा का रिसाव होना
  • पल्मोनरी एम्बोलिज्म या फिर रक्त का थक्का जमना

मांसपेशी या हड्डी संबंधी कारण

  • घायल या टूटी हुई पसली के प्रभाव से
  • थकावट के कारण मांसपेशियों में दर्द से
  • फ्रैक्चर के कारण नसों पर दबाव पड़ने से
  • ब्रेस्ट बोन से पसलियों के जोड़ पर सूजन आने से
  • पसलियों के बीच की मांसपेशियों में तनाव आने से

अन्य कारण

  • मानसिक तनाव
  • पेट में गैस बनना या एसीडीटी
  • पैनिक अटैक
  • पाचन तंत्र संबंधी कारण
  • पेट में ऐंठन होने से
  • पथरी हो जाने से
  • सीने में जलन होने से
  • पेट के अल्सर के कारण

सीने में दर्द को कब गंभीरता से लेना चाहिए?

सीने में दर्द एक ऐसा दर्द है, जिसके संंबंध में यह जानकारी होना बहुत जरूरी है कि कौनसा दर्द सामान्य है और किस दर्द को गंभीरता से लेना चाहिए। क्योंकि इसे सामान्य समझकर, दर्द की गंभीरता को हल्के में लेना या नजरअंदाज करना नुकसानदेह साबित हो सकता है। ऐसे में हम कुछ बिन्दुओं से समझेंगे कि छाती में दर्द को गंभीरता से कब लेना चाहिए।

  • जब सीने में दर्द के साथ सांस लेने में कठिनाई हो।
  • जब सीने में दर्द के साथ भ्रम या भटकाव की स्थिति बने।
  • जब सीने में दर्द के साथ बहुत ज़्यादा पसीना आए।
  • जब सीने में दर्द के साथ मतली या चक्कर आए।
  • जब सीने का दर्द पीठ तक चला जाए।
  • जब सीने के साथ ही जबड़े, बाएँ हाथ या पीठ में दर्द हो।
  • जब दबाव, निचोड़ने, जकड़न महसूस हो।
  • जब बल्ड प्रेसर लॉ एवं हार्ट बीट तेज हो जाए।
  • जब सांसें तेज तेज चलने लगे।
    जब सीने का दर्द लंबे समय तक रहता हो।

क्या छाती में दर्द किसी भी उम्र से हो सकता हैं?

जी हॉं, व्यक्ति को छाती में दर्द किसी भी उम्र में हो सकता है, इसके लिए कोई उम्र सीमा तय नहीं है। लेकिन आमतौर पर यह सात वर्ष के बच्चे से लेकर उम्रदराज व्यक्ति में देखा जाता है। National Center for Health Statistics के आंकड़ों के अनुसार 18 से 64 वर्ष की उम्र के व्यक्तियों में सीने में दर्द की समस्या बहुत आम है। हालांकि उम्र के अनुसार दर्द का कारण एवं प्रकार अलग-अलग हो सकता है।

कैसे पता लगाए कि ये दर्द हार्ट का दर्द है या सामान्य दर्द ?

सीने में दर्द को हार्ट अटैक का एक बड़ा लक्षण माना जाता है। लेकिन सीने में दर्द कई बार गैस बनने या अन्‍य किसी कारण से भी हो सकता है। ऐसे में यह पहचान कर पाना मुश्किल होता है कि सीने का दर्द किस कारण से हो रहा है। आइए, हम इसे समझने का प्रयास करते हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो हार्ट अटैक का दर्द सीने के बीच से जबड़ों, गर्दन और बाएं हाथ में फैलता हुआ महसूस होता है। यह दर्द किसी काम को करने या वजन उठाने से बढ़ जाता है। जबकि सामान्य दर्द में ऐसा नहीं होता है। इसके अलावा हार्ट अटैक का दर्द सीने में बड़ी जगह में फैला हुआ होता है, जबकि सामान्‍य दर्द एक स्‍थान पर भी हो सकता है।

क्या सीने में दर्द हृदय रोग का एक लक्षण हैं?

सीधे तौर पर यह कह पाना मुश्किल होता है कि सीने में दर्द, हृदय रोग का एक लक्षण है या यह किसी अन्य कारण से हो रहा है। जैसा कि हम पहले पढ़ भी चुके हैं कि छाती में दर्द के अन्य कारण भी होते हैं। ऐसे में छाती में दर्द हृदय रोग के कारण हो रहा है या इसके अन्य कारण है, इसका पता लगाने के लिए चिकित्सकीय परामर्श लेना आवश्यक होता है। हालांकि हम दर्द के प्रकार के आधार पर यह अनुमान लगा सकते हैं कि सीने का दर्द सामान्य है या किसी बीमारी का संकेत है। लेकिन हम आपको यही सुझाव देंगे कि अगर आपके सीने में दर्द है तो डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।

छाती में दर्द होने पर डॉक्टर को कब दिखाए?

आमतौर पर शरीर के किसी भी दर्द को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। सीने का दर्द भी एक ऐसा दर्द है जिसमें हमारी लापरवाही हमें परेशानी में डाल सकती है। ऐसे में आवश्यक है कि हम सीने में दर्द की शिकायत पर डॉक्टर से सम्पर्क कर उन्हें अपनी परेशानी बताए।

अब सवाल उठता है कि हम डॉक्टर के पास कब जाए। देखिए इसके लिए हमें यह देखना होगा कि सीने में दर्द किस तरह का है। अगर आपके सीने का दर्द झबड़े, हाथ से होते हुए पीठ तक जा रहा है, छाती में दर्द लगातार बढ़ रहा है या फिर सीने में दर्द के साथ भारीपन महसूस हो रहा है, तो ऐसे में आपको बिना देरी किए डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

हम आपको यही सुझाव देंगे कि अगर आपके सीने में दर्द की शिकायत है तो डॉक्टर से एक बार जरूर मिले। डॉक्टर कुछ जांचों एवं काउंसलिंग के बाद पता लगाएगा कि आपके सीने का दर्द सामान्य है या किसी बीमारी का संकेत है।

सीने में दर्द का इलाज क्या है?

जिस प्रकार सीने में दर्द के विभिन्न कारण एवं प्रकार होते हैं, उसी प्रकार इसका इलाज भी दर्द का कारण एवं उसके प्रकार पर निर्भर करता है। सीने में दर्द के इलाज के लिए यह जानना जरूरी होता है कि दर्द किस प्रकार का है एवं किस कारण से हो रहा है। इसके लिए हमें चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। डॉक्टर हमारे दर्द के बारे में पता कर उसके अनुरूप हमें इलाज बताएगा, जिससे हमें ठीक होने में मदद मिलेगी।

ऐसे में हमारा सुझाव है कि आप सीने में दर्द के इलाज के लिए डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। अगर आप उदयपुर व आसपास में रहते हैं तो डॉ. चौधरी हॉस्पीटल में दिखा सकते हैं। अगर अन्य शहरों में रहते हैं तो अपने नजदीकी अस्पताल या डॉक्टर से परामर्श लेकर ही इलाज शुरू करें।

उपरोक्त लेख इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न लेखों के आधार पर लिखा गया है। आपसे अनुरोध है कि किसी भी बीमारी के लक्षण, उपचार या कारण के बारे में जानने के लिए डॉक्टर से सम्पर्क करें। यह आर्टिकल किसी भी बीमारी की जानकारी मात्र के लिए है।

Why should not medicine be taken without consulting a doctor?

When it comes to your health, consulting a doctor should always be the first course of action. Taking medicine without consulting a doctor can be dangerous, as it can lead to serious health complications and even death.

One of the most dangerous risks of taking medicine without consulting a doctor is that the medication may not be effective for the condition being treated. Different medications can have different effects on different individuals, and without a doctor’s guidance, you may not be taking the right medication for your condition. This could lead to the condition not improving or getting worse. Additionally, some medications can worsen certain conditions or have dangerous interactions with other medications. Without a doctor’s advice, you could be putting yourself at risk of serious health complications.

What are the possible dangers of using the wrong medicines or antibiotics?

If a medication is taken wrongly, it might occasionally cause major injury. Medicines should not be taken without consulting a doctor because they can be potentially dangerous if taken without proper guidance. Different medicines can interact with each other, leading to unforeseen side effects. Additionally, some medicines can be harmful if taken in the wrong dose or if taken with certain medical conditions. A doctor can assess individual medical needs and provide the best advice for taking medicines safely.

Taking incorrect medicines can lead to a variety of side effects, including allergic reactions, digestive issues, skin irritation, dizziness, headaches, and drowsiness. In addition, it can interact with other medications and cause serious side effects, including an increased risk of bleeding, high blood pressure, and even organ failure. In some cases, taking the wrong medication can even be fatal.

Sometimes a patient in an emergency uses or instigates an unnecessary medicine or drug to get it cured at home but it can sometimes prove fatal to the patient in the following ways:

  • Harm to other people’s good microorganisms.
  • Side symptoms such as nausea, vomiting, diarrhea, dermatitis, and urticaria.
  • You may not be aware of the negative effects that come with most medications.
  • The dosage you took could have a detrimental impact on any other medications you are taking and result in unexpected effects.
  • Unable to be treated since the incorrect medicines were used.
  • Antibiotic allergies can be fatal.
  • Difficulty treating illnesses that call for high doses of antibiotics. As the illness worsens, the likelihood of mortality increases.

Please keep in mind that using medicines or antibiotics without consulting a doctor or pharmacist is dangerous and that you shouldn’t use them for a mild infection. The antibiotic dosage needs to be changed for patients with liver or kidney impairment, especially young children. Additionally, the doctor and pharmacist should be advised of any previous medical allergies.

Why should you consult a doctor before taking medicine?

One of the risks of taking medicine without consulting a doctor is that you may be taking too much or too little of the medication. Taking too much medication can lead to serious health complications, including organ damage and even death. On the other hand, taking too little of the medication can lead to the condition not being treated properly and can even cause the condition to worsen. A doctor can help you determine the right dosage for your condition and can adjust the dosage if necessary.

Finally, taking medicine without consulting a doctor can lead to addiction or dependency. Many medications, especially those used to treat pain or mental health conditions, can be highly addictive and can cause dependency if taken too frequently or in too high of doses. A doctor can help you understand the potential risks of the medication and can help you manage your dosage to avoid addiction and dependency.

Conclusion

Taking medicine without consulting a doctor is never a good idea. While it may seem like a convenient option, it can have serious consequences and can even lead to death in some cases. If you think you need to take medication for a medical condition, it is important to consult a doctor first. A doctor can help you determine the best treatment for your condition and can help you manage the medication to avoid any serious health risks.

Why is Blood Pressure Monitoring Necessary Even If You Are Young?

Is the problem of high blood pressure really prevalent at a young age? Does it really matter that your doctor is worried about your blood pressure when you’re young and healthy?

You are not too young to be affected by high blood pressure. Even those who appear to be in good health—roughly half of the people over the age of 20 have raised or high blood pressure. Even though high blood pressure doesn’t have any overt symptoms, it shouldn’t be disregarded.

High blood pressure quietly affects your body over time, increasing your risk of developing significant medical disorders, even though it might not feel like it at the moment. This explains why high blood pressure is known as a silent killer.

What does your blood pressure number mean?

The force that blood exerts on artery walls as it is circulated throughout the body is known as blood pressure. Your arteries are engineered to withstand a certain pressure, but there is a limit to what they can handle.
Because of this, blood pressure is measured and divided into groups according to how it impacts our health.

The four types of blood pressure are as follows:

  1. Less than 120/80 mmHg is considered normal blood pressure.
  2. 120 to 129/80 mmHg is considered higher-than-average blood pressure
  3. Stage 1 high blood pressure: 130–139/80–90 mmHg
  4. Stage 2 hypertension: 140/90 mmHg or greater.

Why is it necessary to monitor blood pressure even at a young age?

Blood pressure monitoring is important for people of all ages, including those who are young, for several reasons:

Early detection of high blood pressure: High blood pressure, also known as hypertension, is a common health issue that can lead to serious health problems such as heart disease, stroke, and kidney disease. Monitoring blood pressure regularly can help detect high blood pressure early and allow for prompt treatment.

Identification of underlying health problems: Abnormal blood pressure readings can indicate underlying health problems, such as heart disease, diabetes, or kidney disease. Regular monitoring can help identify these issues early and take the right measures.

Assessment of lifestyle factors: Blood pressure can be affected by lifestyle factors such as diet, exercise, stress, and alcohol consumption. Regular monitoring can help individuals understand the impact of these factors on their blood pressure and make lifestyle changes to improve their health.

Monitoring the effectiveness of treatment: If an individual is already being treated for high blood pressure, monitoring their blood pressure regularly can help determine the effectiveness of the treatment and adjust it as needed.

In short, regular blood pressure monitoring is important for maintaining good health and preventing long-term health problems, regardless of age.

How does blood pressure affect the health of young people?

High blood pressure, also known as hypertension, can have negative impacts on the health of young individuals. Some of the ways it can affect their health include:

Increased risk of cardiovascular disease: High blood pressure can cause damage to the blood vessels and heart, increasing the risk of heart disease, stroke, and other cardiovascular problems.

Kidney damage: High blood pressure can cause damage to the kidneys, leading to kidney disease and reducing their ability to function properly.

Cognitive decline: High blood pressure has been linked to cognitive decline, including a decline in memory and other cognitive abilities.

Long-term studies have shown that having high blood pressure increases your risk of developing serious health problems later in life, even if you’re only in your twenties or thirties. Uncontrolled high blood pressure is a significant risk factor for middle-aged heart disease, the country’s leading cause of death. Additionally, it raises the chance of kidney disease, stroke, and various eye diseases.

In short, high blood pressure can have a negative impact on the overall health and well-being of young individuals. Regular monitoring and prompt treatment can help prevent or reduce these negative impacts.

How can you lower your blood pressure?

  1. Lifestyle changes: Making changes to your diet, exercise routine, and stress levels can help lower blood pressure. Eating a diet rich in fruits, vegetables, whole grains, and low-fat dairy products and reducing your intake of salt, saturated fat, and alcohol can help. Regular physical activity, such as 30 minutes of moderate exercise most days of the week, can also help lower blood pressure.
  2. Weight management: Maintaining a healthy weight through diet and exercise can help lower blood pressure.
  3. Medications: There are several medications that can be prescribed to help lower blood pressure, including diuretics, ACE inhibitors, calcium channel blockers, and beta-blockers.
  4. Avoiding tobacco: Tobacco use can raise blood pressure, so quitting smoking or using other tobacco products can help lower it.
  5. Limiting alcohol consumption: Excessive alcohol consumption can raise blood pressure, so it’s important to limit alcohol consumption to moderate levels.

Conclusion

It’s important to work with your healthcare provider to develop a personalized plan to lower your blood pressure, taking into account your individual needs and health status. Making lifestyle changes, taking medications as prescribed, and monitoring your blood pressure regularly can help you achieve and maintain healthy blood pressure.

Developed with by nDimensions